सेम मुखेम नागराज मंदिर उत्तराखंड | मंदिर की कहानी, मंदिर आने का बेस्ट टाइम, कैसे पहुंचे?, कहाँ रुके? आदि सभी जानकारी

उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से सम्बोधित किया जाता है क्यों की ऐसा माना जाता है की उत्तराखंड में भगवान शिव का वास है। इसके अलावा भगवान कृष्ण के भी बहुत से मंदिर उत्तराखंड में स्थित हैं, जो लोगो को अपनी और आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक मंदिर ऋषिकेश से मात्र 3 घंटे की दूरी पर स्थित है, जो “सेम मुखेम नागराज मंदिर” के नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और मंदिर की कहानी “भगवान कृष्ण” और “कालिया नाग” से जोड़ी जाती है, जिस वजह से इस मंदिर में लोगो की बहुत गहरी आस्था है। इसके अलावा मंदिर से ऊपर की कुछ दूरी पर एक पत्थर स्थित है, जिसे “ढागधुणी का पत्थर” कहते हैं।

इस ब्लॉग में हम इसी खूबसूरत मंदिर से सम्बंधित सभी जानकारियों के साथ इस मंदिर की कहानी के बारे में भी जानेंगे। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े और यदि आप इस मंदिर की यात्रा पहले भी कर चुकें हो, तो अपना अनुभव हमारे साथ शेयर करें…

सेम मुखेम नागराज मंदिर कहाँ स्थित है?

यह खूबसूरत मंदिर उत्तराखंड राज्य के टेहरी गढ़वाल जिले के प्रतापनगर तहसील के मुखेम गांव में स्थित है। यह ऋषिकेश से मात्र 126 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसे पूरा करने में 3 से 4 घंटे का समय लगता है। ऋषिकेश से सेम मुखेम का सफर बहुत ही खूबसूरत है, जो उत्तराखंड के पहाड़ो से होते हुए भारत के सबसे लम्बे ब्रिज डोबरा-चांटी को पार करके मंदिर तक पहुँचता है।

सेम मुखेम मंदिर की कहानी

इस मंदिर में स्थापित स्वयं-भू नागराज की शिला द्वापर काल की बताई जाती है और इस मंदिर से जुड़ी कहानी भी द्वापर काल की ही बताई जाती है, जिसका सम्बन्ध श्री कृष्ण और कालिया नाग से जोड़ा जाता है।

ऐसा कहा जाता है की द्वापर युग में जब कालिया नाग का आतंक बहुत हो गया था तब श्री कृष्ण ने कालिया नाग का सारा विष निकालकर उसका घमंड चूर-चूर कर दिया। जिसके बाद कालिया नाग भगवान कृष्ण से क्षमा याचना मांगता है तब श्री कृष्ण उसे पश्चाताप करने के लिए पर्वतो की ओर जाने के लिए कहते हैं।

कालिया नाग श्री कृष्ण से प्रार्थना करता है की भगवन मैं और गरुड़ एक दूसरे के विद्रोही हैं और आपने तो मेरा सारा विष निकाल दिया है तो मैं गरुड़ से अपना बचाव कैसे करूँगा। तब श्री कृष्ण कहते हैं की कोई भी तुम्हे नुकसान नहीं पंहुचा सकता है, क्योंकी तुम्हारे सिर पर मेरे पैरो के निशान हैं।

ऐसा माना जाता है की तब कालिया नाग ने इसी जगह पर अपना पश्चाताप किया था और अपने पापों से मुक्ति पायी थी। इस मंदिर में स्थापित नाग राज की शिला स्वयं भू है और यह अपने आप यहाँ पर प्रकट हुयी थी और यह सदियों से मंदिर में विराजमान है। मंदिर में एक ओर गंगू रमोला जी के मूर्ति स्थापित है और ऐसी मान्यता है की मंदिर में आने पर सबसे पहले गंगू रमोला जी के दर्शन करने चाहिए, उसके बाद भगवान कृष्ण और नागराज के दर्शन करने चाहिए।

इस मंदिर से सम्बंधित और गंगू रमोला जी के बारे में एक कहानी बहुत अधिक प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है की जब श्री कृष्ण ने कालिया नाग से पश्चाताप करने के लिए मुखेम जाने के लिए कहा तब इस जगह पर गंगू रमोला जी का अधिपत्य था। श्री कृष्ण एक साधु का भेष धारण करके गंगू रमोला जी से कुछ भूमि मांगते हैं लेकिन गंगू रमोला जी उन्हें घमंड में आकर मना कर देते हैं।

जिसके बाद श्री कृष्ण अपनी माया से गंगू रमोला जी का सारा वर्चस्व मिटा देते हैं, जिसके बाद गंगू रमोला जी कृष्ण जी से क्षमा याचना करते हैं और उन्हें कुछ भूमि प्रदान करते हैं। श्री कृष्ण गंगू रमोला जी को क्षमा करते हुए वरदान देते हैं की सबसे पहले भक्त तुम्हारे दर्शन करेंगे उसके बाद ही मेरे दर्शन करेंगे।

सेम मुखेम नागराज मंदिर का इतिहास

सेम मुखेम मंदिर द्वापर युग का बताया जाता है और इसे मुखेम के राजा गंगू रमोला जी ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है की श्री कृष्ण ने नागराज रूप में गंगू रमोला जी को दर्शन दिए थे, जिसके बाद गंगू रमोला जी ने इस जगह पर मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर में फन फैलाये नागराज और उसके ऊपर बंसी बजाते हुए श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के वर्तमान स्वरुप को अभी जल्द ही पुनर्निर्माण कराया गया है जिसमे मंदिर के एंट्री गेट पर नागराज को दर्शाता हुआ गेट बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में स्वयं भू शिला स्थित है, जिसकी पूजा की जाती है। यह मंदिर 14 फीट चौड़ा और 27 फीट ऊँचा है।

सेम मुखेम मंदिर की टाइमिंग

इस मंदिर में आने से पहले इस मंदिर के खुलने की टाइमिंग के बारे में जरूर पता होना चाहिए। यह मंदिर सातो दिन खुलता है और यह सुबह 4 बजे से भक्तो के लिए खोल दिया जाता है और यह रात 10 बजे तक खुला रहता है।

सेम मुखेम मंदिर आने का सबसे अच्छा समय

यदि इस मंदिर में आने के सबसे अच्छे समय की बात की जाए तो वो “मार्च से जून” के बीच का है। इसके अलावा आप यहाँ पर ठंडो के मौसम में भी आ सकते हैं लेकिन अधिक बर्फवारी की वजह से ठंडो में इस मंदिर का ट्रेक थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही आप इस मंदिर में और मुखेम गांव में लगने वाले मेले के समय भी आ सकते हैं, जो हर वर्ष 26 नवंबर को लगता है।

सेम मुखेम में कहाँ रुके?

इस मंदिर की यात्रा करने के लिए आपको दो दिन की आवश्यकता होगी। यह मंदिर मुखेम गांव के पहाड़ पर स्थित है और इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 2 किलोमीटर का ट्रेक करना होगा। जिसे पूरा करने में आपको कम से कम 3 से 4 घण्टे का समय लगेगा इसलिए आपको एक रात रूककर ही इस मंदिर का ट्रेक करना चाहिए। मुखेम गांव में रुकने के लिए आपको सरकारी रेस्ट हाउस मिल जायेगा, जिसके रूम 700 रुपये से शुरू होकर 1500 रुपये तक हो सकते हैं। इस रेस्ट हाउस में आपको खाने की सुविधा भी मिल जाएगी। इसके अलावा आपको मुखेम गांव में कुछ दूकान भी हैं जहाँ आप खाना और नास्ता कर सकते हैं।

सेम मुखेम नागराज मंदिर ट्रेक

इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 2 किलोमीटर का ट्रेक करना होगा। जो मुखेम गांव से शुरू होता है और मुखेम के जंगलो से होकर जाता है। यह ट्रेक वैसे तो काफी छोटा है, लेकिन है! थोड़ा मुश्किल क्योंकी पहाड़ की एक दम खड़ी चढ़ाई इसे मुश्किल बना देती है। इस ट्रेक को आसान से मध्यम श्रेणी में रखा गया है। इस ट्रेक को करने से पहले आप ट्रेक के बारे में स्थानीय लोगो से कुछ ट्रेक की जानकारी लेंले, जिससे ट्रेक करने में आपको आसानी रहेगी।

मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको एक दम खड़ी चढ़ाई का सामना करना होगा और दूसरा, ट्रेक के बीच में पानी का कोई स्रोत न होना, इसे और कठिन बना देता है। आप ट्रेक शुरू करने से पहले ही पानी की बोतल अपने साथ रख लें और इस ट्रेक को अपनी गति में आराम से पूरा करें। जिससे आपको ज्यादा प्यास भी नहीं लगेगी। यदि आप इस ट्रेक को करने में असमर्थ हैं तो आपको यहाँ पर घोड़ो और खच्चरों की सुविधा मिल जाएगी, जिनकी सहायता से आप मंदिर का ट्रेक कर सकते हैं। इसका किराया एक तरफ का 600 रुपये और दोनों तरफ का 1000 रुपये होता है।

सेम मुखेम मंदिर कैसे पहुंचे?

यह खूबसूरत मंदिर उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर से मात्र 126 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और आप इस मंदिर तक ऋषिकेश से प्राइवेट गाड़ी बुक करके आसानी से पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप रेलमार्ग और हवाईमार्ग द्वारा भी इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं, जिसके बारे में हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं…

हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप इस मंदिर तक फ्लाइट द्वारा आना चाहते हैं तो मैं आपको बता दूं की मुखेम या ऋषिकेश में कोई भी एयरपोर्ट नहीं है। यहाँ का सबसे नजदीक एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। देहरादून से मुखेम तक की बाकि की दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा प्राइवेट गाड़ियों या बस द्वारा पूरी करनी होगी।

रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप ट्रेन द्वारा यहाँ आना चाहते हैं तो आप ऋषिकेश तक की यात्रा ट्रेन द्वारा पूरी कर सकते हैं। मुखेम गांव के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून है। इन जगहों के लिए ट्रेने आपको भारत के विभिन्न शहरों से मिल जाएँगी। इसके अलावा ऋषिकेश से आगे की मुखेम की यात्रा आपको सड़कमार्ग द्वारा पूरी करनी होगी।

सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

मुखेम गांव तक पहुंचने का सबसे अच्छा और आसान तरीका सड़कमार्ग है। आप ऋषिकेश से चम्बा वाली बस पकड़कर मुखेम तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप देहरादून से सीधे मुखेम जाने वाली बस भी ले सकते हैं, लेकिन इस बस की टाइमिंग निश्चित है तो एक बार बस के बारे में पता कर लें। यदि आप अपने वाहन द्वारा आते हैं तो आप नीचे दिए गए रूट को फॉलो कर सकते हैं…

  • ऋषिकेश – टेहरी – डोबरा-चांटी पुल – प्रतापनगर – मुखेम गांव

इसके अलावा आप ऋषिकेश या देहरादून से प्राइवेट गाड़ी बुक करके भी मुखेम तक पहुंच सकते हैं। यह तरीका आसान तो रहता है लेकिन थोड़ा महँगा हो सकता है।

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