गिरिजा देवी मंदिर की यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारी, कैसे पहुंचे? गिरिजा देवी मंदिर का इतिहास, मंदिर कहाँ स्थित है? आदि

उत्तरखंड को ऋषि-मुनियो की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। उत्तराखंड में बहुत से ऐसे मंदिर हैं, जो बहुत प्राचीन हैं और हज़ारो सालो से आज वर्तमान समय में भी मौजूद हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है, जो माता के सिद्धपीठो में से एक है और महाभारत काल का बताया जाता है। मंदिर से जुड़ी कुछ घटनाये और कहानियां ऐसी हैं, जो लोगो को बहुत अधिक आश्चर्यचकित करती हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में स्थित “गिरिजा देवी मंदिर” की, जो माता पार्वती का एक प्राचीन मंदिर है।

इस ब्लॉग में हम गिरिजा देवी मंदिर से सम्बंधित सभी जानकारियों को आपके साथ साझा करेंगे जैसे- मंदिर कहाँ स्थित है? मंदिर कैसे पहुंचे? गिरिजा देवी मंदिर का इतिहास, गिरिजा देवी मंदिर की कहानी क्या है? मंदिर आने का सबसे अच्छा समय क्या है? मंदिर दो महीने बंद क्यों रहता है? आदि। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े और यदि आपको किसी और तरह की सहायता चाहिए तो हमारे साथ कमेंट के माध्यम से जुड़े…

गिरिजा देवी मंदिर कहाँ स्थित है?

गिरिजा देवी मंदिर, जिसे “गर्जिया देवी मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है, यह उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर में खाल गांव में कोसी नदी के बीच में स्थित है। यह एक पौराणिक और प्राचीन मंदिर है, जो महाभारत काल का बताया जाता है। यह मंदिर रामनगर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहाँ से आप रामनगर की लोकल बस या टैक्सी द्वारा आप आसानी से गिरिजा देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

गिरिजा देवी मंदिर का इतिहास

गिरिजा देवी मंदिर का इतिहास लगभग हज़ारो साल पुराना है और इसे महाभारत काल का बताया जाता है। वर्तमान में यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, वह पुराने समय में काफी बड़ा पहाड़ था लेकिन कोसी नदी में बाढ़ आने से यह पहाड़ पानी में बहता चला गया और आज वर्तमान में काफी छोटा सा बचा हुआ है। यदि इस मंदिर के निर्माण के बारे में बात की जाए तो मंदिर प्रागण में लगी शिलालेख और पंडित जी द्वारा यह बताया जाता है की यह पहले अस्थाई मंदिर था, जहाँ पर सिर्फ माता की मूर्ति स्थापित थी और ज्यादा लोगो यहाँ पर पूजा करने नहीं आते थे।

सन 1935 में रानीखेत बित्थड़ के निवासी पंडित रामकृष्ण पांडेय जी का इस जगह आगमन हुआ और उनके द्वारा मंदिर में सही तरह से पूजा-अर्चना शुरू की गयी। सन 1935 के बाद यहाँ पर एक मंदिर का निर्माण किया गया, जो 1968 में आयी कोसी नदी में बाढ़ के साथ पूरी तरह बह गया। इसके बाद पंडित रामकृष्ण जी और आस पास के स्थानीय लोगो की सहायता से इस मंदिर का निर्माण पुनः कराया गया और 26 जनवरी 1969 में मंदिर में माता की मूर्ति की स्थापना की गयी। तब से लेकर अब तक यह मंदिर अपना अस्तित्व बनाये हुए है।

गिरिजा देवी मंदिर की कहानी

गिरिजा देवी, माता पार्वती का ही दूसरा नाम है। माता पार्वती गिरिराज हिमालय की पुत्री थी जिस कारण उन्हें गिरिजा नाम से पुकारा जाता था। गिरिजा देवी मंदिर एक पौराणिक और प्राचीन मंदिर है और इस मंदिर से सम्बंधित बहुत सी किवदंतिया प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक किवदंती के अनुसार ऐसा बताया जाता है की पौराणिक समय में जिस जगह यह मंदिर स्थित है यहाँ पर राजा विराट ने माँ गिरिजा की उपासना की थी, जिसके बाद माता ने उन्हें यहाँ पर दर्शन दिए थे।

एक दूसरी किवदंती अनुसार इस जगह पर ऋषि कौशिक ने भी माँ गिरिजा की उपासना की थी, जिनके नाम पर गिरिजा मंदिर के पास बहने वाली नदी का नाम पड़ा है, जिसे आज वर्तमान समय में “कोसी नदी” के नाम से जाना जाता है।

गिरिजा देवी को “गर्जिया देवी” के नाम से भी जाना जाता है, जिसके पीछे भी एक बहुत ही रोचक कहानी बताई जाती है। स्थानीय लोगो द्वारा बताया जाता है की पहले समय में इस मंदिर की परिक्रमा शेर किया करते थे और जोर-जोर से गर्जन किया करते थे, जिसके बाद माता को गर्जिया नाम से और मंदिर को गर्जिया देवी मंदिर के नाम से पुकारा जाने लगा।

गिरिजा देवी मंदिर का विवरण

गिरिजा देवी मंदिर उत्तराखंड की कोसी नदी के बीच में एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग आधा या एक किलोमीटर का छोटा सा ट्रेक करना होगा, जो की एक दम आसान और समतल है। जहाँ आपको टैक्सी वाले ड्राप करेंगे उसके थोड़ा सा आगे बढ़कर मंदिर की मार्केट शुरू हो जाती है, जो मंदिर के गेट तक बनी हुए है।

आप जब मंदिर के गेट से अंदर प्रवेश करेंगे तो उसके आगे आपको एक बड़ा सा प्रागण दिखाई देगा जहाँ श्रद्धालु भंडारा का आयोजन कराते हैं। प्रागण से आगे बढ़कर आपको पुल की ओर चलना होगा, जिससे आगे बढ़कर आपको एक पहाड़ी दिखाई देगी, जिस पर माता का मंदिर बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 90 सीढियाँ चढ़नी होंगी, जिन्हे चढ़ने के बाद आप माता के दर्शन कर सकते हैं।

मंदिर के अंदर माता गिरिजा के साथ-साथ बटुक भैरव, माँ कलिका, माँ सरस्वती और गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा पहाड़ी के नीचे साइड में भैरव बाबा का भी एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है, जिनके दर्शन करने के बाद ही यह यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

गिरिजा देवी मंदिर का प्रसाद

गिरिजा देवी मंदिर में माता को प्रसाद के रूप में जटा वाला नारियल, लाल चुन्नी, माता का श्रृंगार, और मीठे परमल चढ़ाये जाते हैं। इसके अलावा भैरव बाबा को प्रसाद के रूप में चावल और उड़द की दाल चढ़ाई जाती है। इन प्रसाद को आप मंदिर के पास बनी मार्केट से खरीद सकते हैं। यहाँ पर आपको प्रसाद के रेट निश्चित मिलेंगे जैसे- 21, 51, 101, 151, और 201 रुपये।

गिरिजा देवी मंदिर आने का सबसे अच्छा समय

यदि इस मंदिर में आने के सबसे अच्छे समय की बात की जाए तो वो “नवरात्री और गंगा मेला” के समय का होता है। इसके अलावा आप कार्तिक पूर्णिमा को होने वाले गंगा स्नान, बसंत पंचमी, उत्तरायणी और शिवरात्रि के अवसर पर भी आ सकते हैं। इन समय पर श्रद्धालु सबसे ज्यादा मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। नीचे हम सीजन के हिसाब से गिरिजा देवी मंदिर आने के सबसे अच्छे समय के बारे में बता रहे हैं…

मार्च से जून

ये महीने माता के मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। मार्च के बाद का समय हल्का-हल्का ठंडा होता है, इसके साथ ही मौसम बिल्कुल साफ़ होता है। अप्रैल के बाद बच्चो के स्कूल की छुटियाँ होती है, जिस कारण मार्च से जून के बीच का समय गिरिजा देवी मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे आदर्श समय माना जाता है। मार्च से अप्रैल के बीच माता के नवरात्री होते हैं, जो इन महीनो में यात्रा करने के लिए और अच्छा होते हैं।

जुलाई से अगस्त

ये महीने मानसून सीजन के होते हैं , जिस कारण इस समय मंदिर के कपाट बंद होते हैं। जब मानसून का सीजन (जुलाई से अगस्त) होता है तब कोसी नदी में पानी का स्तर काफी ज्यादा होता है, जिस कारण कोसी नदी पर बने मंदिर तक जाने वाले पुल को कुछ महीनो (मानसून जाने तक) के लिए बंद कर दिया जाता है। जब पानी का स्तर नीचे आ जाता है तो मंदिर को पुनः श्रद्धालुओ के लिए खोल दिया जाता है।

अगस्त से फरवरी

यदि आपको ठंडो में यात्रा करना पसंद है तो आप अगस्त से फरवरी के बीच भी गिरिजा देवी मंदिर की यात्रा कर सकते हैं। इन महीनो में गंगा दशहरा, उत्तरायणी, और बसंत पंचमी का पर्व आता है तो आप इन पर्वो के अनुसार आप किसी भी समय इस मंदिर की यात्रा कर सकते हैं और मंदिर में दर्शन करने के लिए आ सकते हैं।

गिरिजा देवी मंदिर कैसे पहुंचे?

गिरिजा देवी मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रामनगर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप इस मंदिर तक हवाईमार्ग, रेलमार्ग और सड़कमार्ग द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। नीचे हम इन तीनो माध्यमो के बारे में विस्तार से बता रहे हैं…

सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

उत्तराखंड की यात्रा करने का सबसे अच्छा माध्यम है सड़कमार्ग। आप जिस भी शहर से आ रहे हैं यदि आपके शहर से रामनगर या नैनीताल के लिए सीधे बस उपलब्ध है तो आप सीधे बस लेकर नैनीताल या रामनगर पहुंच सकते हैं। यदि आपके शहर से सीधे बस उपलब्ध नहीं हैं तो आप सबसे पहले दिल्ली या फिर बरेली जैसे शहर आ सकते हैं और फिर वहां से रामनगर के लिए सीधे बस पकड़ सकते हैं। रामनगर बस स्टैंड से आपको गिरिजा देवी मंदिर के लिए लोकल बस या फिर टैक्सी मिल जाएगी, जिनके द्वारा आप मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप ट्रेन द्वारा रामनगर आना चाहते हैं तो आप अपने शहर से ट्रेन पकड़कर सीधे रामनगर पहुंच सकते हैं। गिरिजा देवी मंदिर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर में ही मौजूद है। रामनगर के लिए ट्रेन उत्तरखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों से आसानी से मिल जाएँगी। रामनगर से गिरिजा देवी मंदिर तक की 15 किलोमीटर की बाकि दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा बस या फिर टैक्सी द्वारा तय करनी होगी।

हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप रामनगर तक फ्लाइट द्वारा आना चाहते हैं तो, मैं आपको बता दूं की रामनगर में कोई भी एयरपोर्ट मौजूद नहीं है। रामनगर के सबसे निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंतनगर से गिरिजा देवी मंदिर तक की बाकि दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा ही तय करनी होगी।

यात्रा टिप्स

  • यदि आप मानसून सीजन के बाद गिरिजा देवी मंदिर की यात्रा कर रहे हैं तो आप कोसी नदी के आस-पास न जाए, क्योंकि मानसून सीजन के बाद भी कोसी नदी में पानी का स्तर काफी होता है।
  • आप गिरिजा देवी मंदिर में दर्शन करने के बाद पहाड़ी के नीचे बने भैरव बाबा के दर्शन भी जरूर करें।
  • मंदिर के पास ही जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क है तो यदि आपके पास समय है तो आप वहां भी जा सकते हैं।
  • यदि आप अप्रैल से जून के बीच आ रहे हैं तो आपको ज्यादा गर्म कपड़ो की आवश्यकता नहीं होगी।

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