उत्तराखंड की राजधानी देहरादून एक बहुत ही खूबसूरत शहर है, जो अपनी सुंदरता के साथ-साथ पौराणिक और प्राचीन मंदिरो के लिए जाना जाता है। यहाँ बहुत से प्राचीन और अनदेखे मंदिर स्थित हैं जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते है। एक ऐसे ही मंदिर की जानकारी हमने अपने पीछे ले ब्लॉग में दी थी ,जो “महासू देवता मंदिर बिसोई” के नाम से जाना जाता है। इस ब्लॉग में हम जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहें है वह मुग़ल काल और मुग़ल बादशाह औरंगजेब से सम्बंधित है। मंदिर से सम्बंधित एक बहुत ही चमत्कारिक कहानी बताई जाती है, जो दो भाई-बहन संतरा और संतूर से सम्बंधित है।
देहरादून से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर एक मंदिर स्थित है, जो “संतला देवी मंदिर” के नाम से जाना जाता है। यह देहरादून में स्थित एक अनएक्सप्लोरे (Unexplore) और अनदेखा मंदिर है, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। इस ब्लॉग में इसी खूबसूरत मंदिर की सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे जैसे- मंदिर कहाँ स्थित है? मंदिर की कहानी? माता द्वार किये जाने वाले चमत्कार आदि। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े…
संतला देवी मंदिर कहाँ स्थित है?
संतला देवी मंदिर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 15 किलोमीटर की दूरी पर संतुरगढ़ की एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर की देहरादून से दूरी 15 किलोमीटर, ऋषिकेश से 51 किलोमीटर और हरिद्वार से 70 किलोमीटर है। आप देहरादून घंटा घर वाले मार्ग से जैतुनवाला तक पहुंचे जाएँ और फिर वहां से पंजाबवाला, जहाँ से मंदिर का पैदल ट्रेक शुरू होता है, जो लगभग 1.5 किलोमीटर लम्बा है।
संतला देवी मंदिर की कहानी
इस मंदिर से सम्बंधित एक बहुत ही रोचक कहानी बताई जाती है, जो मुग़ल बादशाह औरंगजेब और दो भाई-बहन संतरा और संतूर से सम्बंधित है। ऐसा बताया जाता है की नेपाल राजा के दो बच्चे संतरा और संतूर देहरादून के संतुरगढ़ किले पर रहा करते थे। जब मुग़ल काल में औरंगजेब ने भारत पर आक्रमण किया तब उसकी सेना संतुरगढ़ पहुंची और उसके सेनापति ने माता संतरा को देखा और उसकी सुंदरता के बारे में औरंगजेब को बताया। औरंगजेब माता संतरा के सामने विवाह का प्रस्ताव भेजता है, जिसे माता मना कर देती हैं।
माता संतरा माँ दुर्गा की बहुत बड़ी भक्त थी और उनका ज्यादातर समय माता की भक्ति में व्यतीत होता था। जब औरंगजेब को पता चलता है की माता ने विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया है तो वह अपनी सेना को संतुरगढ़ पर हमला करने के लिए भेज देता है। माता और उनका भाई औरंगजेब की सेना से बहादुरी से लड़ते हैं और अंत में जब उनका भाई प्राण त्याग देता है।
तब माता को लगता है की वे सेना से लड़ने में असमर्थ हैं तो वो अपने अस्त्रो को एक जगह त्याग कर माता की भक्ति में लीन हो जाती हैं। जिसके कुछ ही देर बाद आसमान से एक तेज़ प्रकाश चमकता है, जिससे माता एक शिला में परिवर्तित हो जाती हैं और औरंगजेब के सभी सैनिक अंधे हो जाते हैं।
इस घटना के बाद माता के वंश के लोग संतुरगढ़ की पहाड़ी पर एक मंदिर का निर्माण कराते हैं और मंदिर में माता की शिला की पूजा अर्चना करते हैं। उसके बाद से आज भी लगातार मंदिर में श्रद्धालुओ की भीड़ रहती है और माता की पूजा की जाती है।
संतला देवी मंदिर की मान्यता
मुग़ल काल के बाद जब भारत पर ब्रिटिश सरकार ने अपनी हुकूमत जमाना शुरू की तब एक ब्रिटिश सरकार का अफसर मंदिर में आया। उस ब्रिटिश अफसर के कोई औलाद नहीं थी जिससे वह दुखी रहता था। वह मंदिर में आकर माता की पूजा-अर्चना करता है और संतान प्राप्ति की मन्नत मांगता है इसके एक साल बाद ही वह एक बच्चा का पिता बन जाता है। इसके बाद से संतान विहीन माता-पिता मंदिर में माता की पूजा-अर्चना करने आने लगे और मंदिर संतान प्राप्ति मनोकामना मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होने लगा। आज भी लोग इस मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना करने और माता से मन्नत मांगने आते हैं।
संतला देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?
यह मंदिर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास स्थित है। यदि आप उत्तराखंड से हैं तो आप सड़कमार्ग द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं और यदि आप उत्तराखंड के बाहर किसी और राज्य से हो तो आप पहले हवाई मार्ग या रेलमार्ग की सहायता लें सकते हैं और फिर सडरकमार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले देहरादून पहुंचना होगा। उसके बाद आप देहरादून घंटा घर वाले मार्ग से होते हुए जैतून वाला तक पहुंचे और फिर वहां से पंजाबवाला, जहाँ से मंदिर के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है। आप देहरादून से जैतूनवाला वाली प्राइवेट और सरकारी बस द्वारा पंजाबवाला तक पहुंच सकते हैं और फिर वहां से पैदल यात्रा शुरू कर सकते हैं।
इसके अलावा यदि आप अपनी गाड़ी द्वारा आ रहे हैं तो आप नीचे दिए गए रूट को फॉलो करें…
- हरिद्वार – ऋषिकेश – देहरादून – देहरादून घंटा घर – जैतुनवाला – पंजाबवाला – संतला देवी मंदिर
इसके अलावा आप उत्तराखंड एक अलावा किसी और राज्य से आ रहें हैं तो आप हवाईमार्ग और रेलमार्ग की सहायता से देहरादून तक पहुंच सकते हैं और फिर प्राइवेट टैक्सी या बाइक या स्कूटी रेंट पर लेकर मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
- निकटतम एयरपोर्ट:- जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
- निकटतम रेलवे स्टेशन:- देहरादून रेलवे स्टेशन
मंदिर का पैदल ट्रेक
गाड़ी द्वारा पंजाबवाला तक पहुंचने के बाद आपको मंदिर के लिए लगभग 1.5 किलोमीटर का ट्रेक करना होगा। यह ट्रेक मध्यम श्रेणी का ट्रेक है, जिसे पूरा करने में आपको कम-से-कम 2 से 2.5 घंटे का समय लगेगा। यह ट्रेक लम्बा तो नहीं है लेकिन थोड़ा कठिन जरूर है क्योंकि ट्रेक में आपको खड़ी चढ़ाई का सामना करना पड़ता है जो इस ट्रेक को थोड़ा मुश्किल बना देती है। इसके साथ ही ट्रेक के बीच में ज्यादा पानी के स्रोत नहीं हैं तो अपने साथ पर्याप्त पानी की बोतल रखें और सुबह में जल्दी इस मंदिर का ट्रेक शुरू करें।
मंदिर का ट्रेक करने का सबसे अच्छा समय
यदि आप इस मंदिर में माता के दर्शन करने आ रहे हैं तो आप सुबह में जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी इस मंदिर का ट्रेक शुरू करें। यदि आप दोपहर के समय में ट्रेक शुरू करते हैं तो ट्रेक करने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है क्योंकि दोपहर में धुप और गर्मी काफी हो सकती है इसलिए फिर आप इस ट्रेक को शाम में 3 बजे के समय शुरू करें।
मंदिर में चढ़ने वाला प्रसाद
इस मंदिर में प्रसाद के रूप में नारियल और हलुआ-पूरी चढ़ाई जाती हैं। इसके अलावा इस मंदिर में माता का श्रृंगार, परमल और मीठे बताशे भी चढ़ाएं जातें हैं। आप मंदिर का ट्रेक शुरू करने से पहले नीचे प्रसाद खरीद सकते हैं इसके अलावा मंदिर के बाहर भी एक छोटी सी मार्केट है, जहाँ से आप प्रसाद खरीद सकते हैं। नीचे की तुलना में मंदिर के पास प्रसाद थोड़ा महंगा होता है।
मंदिर आने का सबसे अच्छा समय
यदि मंदिर आने के सबसे अच्छे समय की बात की जाये तो वह मार्च से जून के बीच का होता है। इस समय यहाँ का मौसम बिलकुल साफ होता है जो ट्रेक करने और घूमने के लिए अनुकूल होता है। इसके अलावा नवरात्रों के समय में भी इस मंदिर में आना बहुत अधिक शुभ माना जाता है और खासकर शनिवार के दिन इस मंदिर में भक्तो की बहुत अधिक भीड़ रहती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि माता शनिवार के दिन ही शिला में परिवर्तित हुयी थी।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
- यदि आप दो लोग देहरादून से बाइक या स्कूटी से इस मंदिर की यात्रा शुरू कर रहे हैं तो आप डबल हेलमेट लेकर चलें क्योंकि देहरादून से पंजाबवाला तक काफी आर्मी चौकी पड़ती हैं जो आपको डबल हेलमेट के बिना मंदिर की आगे की यात्रा शुरू नहीं करने देंगे।
- मंदिर की यात्रा करने का विशेष दिन शनिवार का होता है और इस दिन भक्तो की सबसे अधिक भीड़ रहती है।
- मंदिर का ट्रेक शुरू करने से पहले अपने साथ पानी की बोतल जरूर रखे क्योंकि ट्रेक के बीच में ज्यादा पानी के स्रोत नहीं हैं।
- आपको खाने-पीने की सुविधा ऊपर मंदिर के पास मिल जाएगी, जहाँ आप खाना के अलावा नास्ता भी कर सकते हैं।