भारत के उत्तराखंड राज्य में बहुत से पौराणिक मंदिर बने हुए हैं, जिनमें से बहुत से मंदिरो के बारे में लोगो को पता है लेकिन अब भी बहुत से ऐसे पौराणिक मंदिर हैं, जो अन-छुये हैं। ऐसा ही एक मंदिर ऋषिकेश से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो “बालकुंवारी मंदिर” के नाम से जाना जाता है। यह एक पौराणिक सिद्धपीठ मंदिर है, जो लगभग 150 वर्ष पुराना है।
इस ब्लॉग में हम इसी खूबसूरत और पौराणिक मंदिर की यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे जैसे- यह मंदिर कहाँ स्थित है? मंदिर का इतिहास? मंदिर की कहानी? और मंदिर कैसे पहुंचे? आदि। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े और आप पहले इस मंदिर की यात्रा कर चुके हो तो अपना अनुभव हमारे साथ शेयर करें…
बालकुंवारी मंदिर कहाँ स्थित है?
यह खूबसूरत मंदिर उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर से 37 किलोमीटर दूर, यमकेश्वर मार्ग पर गरुड़ चट्टी से आगे पीपलकोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर से 5 किलोमीटर पहले स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर से 5 किलोमीटर पहले एक डाइवर्जन है जिसके बायीं ओर के पर्वत पर यह खूबसूरत मंदिर स्थित है।
- पता :- यमकेश्वर मार्ग, पीपलकोटी नीलकंठ महादेव मंदिर से 5 किलोमीटर पहले आमड़ी गांव ऋषिकेश, उत्तराखंड
बालकुंवारी मंदिर का इतिहास
उत्तराखंड में बहुत से पौराणिक मंदिर स्थित हैं, जिनका अस्तित्व कई सौ वर्ष पुराना है, ऐसा ही एक मंदिर ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर के पास स्थित है जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। यह मंदिर ऋषिकेश के एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है, जहाँ से हेंवल नदी की घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।
इस मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है की यह मंदिर लगभग 150 साल पुराना है और इसे इसके पास स्थित आमड़ी गांव के लोगो ने बनवाया था। तब यह मंदिर काफी छोटा था और इसके बाद से इस मंदिर का तीन बार जीणोद्धार कराया जा चूका है जिसमें सबसे पहले 1938 में इस मंदिर को थोड़ा बड़ा रूप दिया गया उसके बाद 1996 में और फिर 2005 में, जो अभी मंदिर का वर्तमान स्वरूप मौजूद है।
माँ बालकुंवारी मंदिर की कहानी
यह मंदिर एक सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है और इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी बताई जाती है। ऐसा कहा जाता है की मंदिर के पास के आमड़ी गांव में एक वृद्ध रहता था, जो प्रति दिन माता की पूजा किया करता था। एक दिन माँ उसके सपने में आकर पिंडी रूप में दर्शन देती हैं, और गांव के पास के पहाड़ की चोटी पर अपने निवास स्थान के बारे में बताती हैं। उसके बाद वह वृद्ध सभी गांव वालो के साथ मिलकर पहाड़ की चोटी पर मंदिर का निर्माण कराता है।
मंदिर का विवरण
मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 1 किलोमीटर का ट्रेक करके लगभग 400 सीढ़ियां चढ़नी होंगी। पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर में आप माँ दुर्गा के बालकुंवारी रूप के दर्शन के साथ-साथ भगवान गणेश, भोले शंकर, और माँ काली के दर्शन भी कर सकते हैं। इस मंदिर में एक हवन कुंड वेदी भी बनी हुयी है, जहाँ शुभ अवसरों पर हवन किये जाते हैं। मंदिर के चारो ओर आपको हरियाली के साथ पहाड़ो के खूबसूरत दृश्य दिखाई पड़ेंगे। मंदिर के बाहर की ओर एक शिला स्थित है, जिसे “हनुमान शिला” के नाम से जाना जाता है और उसकी पूजा की जाती है।
मंदिर के एक ओर से नीचे बहने वाली हेंवल नदी और उसकी घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। इस मंदिर में आपको शांत और स्वच्छ वातावरण देखने को मिलेगा इसलिए यदि आपको ऋषिकेश में प्रकृति के बीच किसी खूबसूरत और शांत जगह की तलाश है तो आप इस मंदिर में जरूर विजिट करें।
माँ बालकुंवारी मंदिर तक कैसे पहुंचे?
यह मंदिर उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर से मात्र 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश आना होगा और फिर वहां से प्राइवेट गाड़ियों की सहायता से आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं। नीचे हम ऋषिकेश और वहां से मंदिर तक पहुंचने के साधनो के बारे में बता रहे हैं…
सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
बालकुंवारी सिद्धपीठ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। देश के विभिन्न शहरों से ऋषिकेश के लिए सीधे सरकारी बस सेवा उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से आप ऋषिकेश तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा दिल्ली, बरेली, हरिद्वार, और देहरादून जैसे शहरों से प्राइवेट वॉल्वो बस सेवा भी उपलब्ध है। इसके बाद आप ऋषिकेश से प्राइवेट टैक्सी बुक करके ही मंदिर तक पहुंच सकते हैं क्योंकि यहाँ शेयरिंग टैक्सी या ऑटो की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा आप ऋषिकेश से बाइक या स्कूटी रेंट पर लें सकते हैं जिसकी सहायता से आप मंदिर तक आसानी से पहुंच जाएंगे।
रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
बालकुंवारी मंदिर गरुड़ चट्टी से आगे पीपलकोटी जगह पर पड़ता है और यह एक पहाड़ी इलाका है, जहाँ कोई भी रेलवे स्टेशन स्थित नहीं है। पीपलकोटी के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है और फिर यहाँ से मंदिर तक की बाकि दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा पूरी करनी होगी।
हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
मंदिर के आस पास कोई भी एयरपोर्ट मौजूद नहीं है, यहाँ का सबसे नजदीक एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। देहरादून से ऋषिकेश की दूरी लगभग 39 किलोमीटर है, जिसे आपको बस या प्राइवेट टैक्सी या फिर शेयरिंग ऑटो या टैक्सी के द्वारा पूरा करना होगा। आप देहरादून से सीधे बालकुंवारी मंदिर के लिए टैक्सी भी बुक कर सकते हैं।
मंदिर का ट्रेक
मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कुछ किलोमीटर का पैदल ट्रेक करना पड़ेगा, जो की मुख्य सड़क से मंदिर तक सीढ़ियों द्वारा जाता है। वैसे मंदिर तक पहुंचने के तीन मार्ग हैं, जिनमें से एक श्रद्धालु और पर्यटकों द्वारा यूज़ किया जाता है और बाकि दो मार्ग सिर्फ मंदिर के आस-पास के स्थानीय लोग ही यूज़ करते हैं।
पर्यटकों वाले मार्ग में आपको लगभग 1 से 1.5 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है लेकिन बीच में एक दम से खड़ी चढ़ाई और इसके साथ लगभग 400 सीढ़ियां इस ट्रेक को थोड़ा मुश्किल बना देती हैं। आप मंदिर तक का यह ट्रेक लगभग 1 से 2 घंटे में पूरा कर लोगे। मंदिर के बीच में कोई भी पानी का स्रोत नहीं है तो आप ट्रेक के बीच में पीने के लिए नीचे से पानी जरूर भर लें।
माँ बालकुंवारी मंदिर की टाइमिंग
बालकुंवारी मंदिर आने से पहले आपको इस मंदिर की टाइमिंग के बारे में जरूर पता होना चाहिए। यह मंदिर सुबह 6 बजे खुल जाता है और शाम 6 बजे आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
- टाइम:- सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
मंदिर आने का सबसे अच्छा समय
इस मंदिर में आने का सबसे अच्छा समय मानसून के बाद के दो महीने होते हैं, यानि सितम्बर से अक्टूबर। बाकि आप पर भी निर्भर करता है की आप किस मौसम में ऋषिकेश की यात्रा कर रहे हैं और किस प्रकार का मौसम आपको पसंद है। वैसे अधिकतर पर्यटक इस मंदिर में नवरात्रो में और फिर अप्रैल से जून के बीच में आना पसंद करते हैं। तो आप मानसून को छोड़कर किसी भी समय इस मंदिर में विजिट कर सकते हैं।
मंदिर में रुकने की व्यवस्था
यदि आप मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं और मंदिर में एक रात रुकने के बारे में सोच रहे हैं तो मैं आपको बता दूँ की मंदिर में रुकने की कोई भी व्यवस्था मौजूद नहीं है और मंदिर के आस पास भी किसी तरह की कोई भी रुकने की व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा मंदिर के आस-पास के गांव में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है जिस कारण आप वहां पर भी नहीं रुक सकते हैं इसलिए आप इस मंदिर की यात्रा जल्दी शुरू करें और शाम में मंदिर के कपाट बंद होने से पहले मंदिर में दर्शन करके निकल जाएँ।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
- मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 1 से 2 किलोमीटर का ट्रेक करना होगा इसलिए आराम दायक जूतें पहने और अपने साथ हल्का सामान ही रखे।
- मंदिर के ट्रेक के बीच में कोई भी पानी का स्रोत नहीं है इसलिए ट्रेक शुरू करने से पहले पानी की बोतल जरूर भर लें।
- मंदिर के ट्रेक के शुरुआती बिंदु पर, बीच में या फिर मंदिर परिसर के आस पास कोई भी खाने पीने की दूकान नहीं है तो अपने साथ कुछ हल्का नास्ता जरूर रखे।
- मंदिर आने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून के बीच का है या फिर आप मानसून के बाद के दो महीनो के बीच में भी आ सकते हैं।
- मंदिर के पास स्थित आमड़ी गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है तो आप उस तरफ बिलकुल भी ना जाएँ।