उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र और हिमांचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रो में स्थानीय लोग महासू देवताओ को अपना कुल देवता के रूप में मानते हैं। इन क्षेत्रो में महासू देवताओ के बहुत ही प्राचीन और सुन्दर मंदिर भी बने हुए हैं, जो लोगो को अपनी वास्तुकला और धार्मिक आस्था की वजह से आकर्षित करते हैं। मान्यता के अनुसार चार भाइयों बोथा, बाशिक, पावशी और चाल्दा को महासू देवता के रूप में पूजा जाता है, जिन्हे शिव का रूप माना जाता है। सबसे प्रसिद्ध महासू देवता का मंदिर उत्तराखंड के हनोल गांव में है, जिसके दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
इस ब्लॉग में हम जिस महासू देवता मंदिर की बात कर रहे हैं, वह उत्तराखंड के बिसोई गांव में स्थित है। जो देहरादून जिले में पड़ता है और इस मंदिर के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं जिससे यह देहरादून की एक ऑफ बीट डेस्टिनेशन भी है। हम इस ब्लॉग में “महासू देवता मंदिर बिसोई” की सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे जैसे- महासू देवता मंदिर कहाँ है? आप मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं? आप कहाँ रुक सकते हैं? आदि। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े और यदि आप इस मंदिर की यात्रा पहले कर चुके हैं तो अपना अनुभव हमारे साथ साझा करें…
महासू देवता मंदिर बिसोई कहाँ है?
उत्तराखंड में वैसे बहुत से महासू देवता के छोटे बड़े मंदिर बने हुए हैं, लेकिन हम जिस महासू देवता मंदिर की बात कर रहे हैं वह उत्तराखंड के देहरादून जिले के बिसोई गांव में स्थित है। यह देहरादून से 92 किलोमीटर और मसूरी 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
महासू देवता मंदिर का इतिहास
यह मंदिर देहरादून जिले के बिसोई गांव में स्थित है, जिसे बहुत ही प्राचीन माना जाता है। इस मंदिर के पीछे स्थानीय लोगो द्वारा एक कहानी बताई जाती है जिसमें कितनी सच्चाई है इस बात का प्रमाण यह मंदिर और इस मंदिर में बनी प्राचीन पानी की बाबड़ी देती है।
ऐसा बताया जाता है की बिसोई गांव से एक किलोमीटर दूर एक गांव है, जहाँ बहुत समय पहले एक पंडित जी रहते थे। पंडित जी की पत्नी प्रति दिन गांव के किनारे के जल स्रोत से पानी भरने जाती थी। एक दिन उन्हें सोने के छत्र का साँप दिखाई दिया जिसे वो अपने कपड़े में लपेटकर घर ले आयी और पंडित जी को उसके बारे में बताया। पंडित जी सोने के साँप को एक किताब में रख देते हैं उसके बाद से उनकी पत्नी में कुछ व्यावहारिक परिवर्तन आने लगता है।
पंडित जी पत्नी को लेकर एक ऋषि के पास जाते हैं जो उन्हें बताते हैं की एक देवता है जो अपने लिए कुछ स्थान मांग रहा है। उसके बाद पंडित जी जिस जगह मंदिर है उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण कराते हैं और प्रति दिन अपने गांव से स्नान करके महासू देवता की पूजा करने लगते हैं। समय के साथ जब वे बूढ़े हुए तो वो मंदिर तक आने जाने में असमर्थ होने लगे तब उन्होंने देवता से प्रार्थना की यदि आप में सच में कोई शक्ति है तो आप मंदिर के पास ही पानी का स्रोत बना दें।
उसके एक दो दिन बाद मंदिर की पास परिसर में एक जगह से पानी निकलने लगा, जहाँ आज एक बाबड़ी बनी हुयी है। इस पूरी कहानी का प्रमाण मंदिर परिसर में बनी बाबड़ी और वह जगह जहाँ सोने के छत्र वाला साँप मिल था वह देती है।
बिसोई महासू देवता मंदिर में किसकी पूजा की जाती है?
इस मंदिर में आपको चारो महासू देवता भाइयों के दर्शन करने के लिए मिल जायेंगे, जिसमे मुख्यता चाल्दा महासू और बोथा महासू हैं।
मंदिर का निर्माण
यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप अभी जल्दी में 2023 में बन कर तैयार हुआ है। इस मंदिर की देख रेख बिसोई और इसके आस-पास के 15 गांव करते हैं। जिन्होंने पैसे इकठ्ठा करके 2006 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करना शुरू किया जो 2023 में बनकर तैयार हुआ और 15 दिसंबर 2023 को इसका उद्घाटन किया गया।
मंदिर की बनावट
यह मंदिर बिसोई गांव में एक बहुत बड़े समतल एरिया में बना हुआ है। जिसे देवदार की लकड़ियों द्वारा बनाया गया है। मंदिर का बाहरी आवरण जितना खूबसूरत है उतना ही खूबसूरत इसका आंतरिक आवरण है। पूरे मंदिर में अलग-अलग देवी-देवताओं की आकर्ति को उकेरा गया है और मंदिर की बनावट भारत की स्थापत्य कला को बहुत ही सुन्दर तरीके से पेश करती है।
महासू देवता मंदिर बिसोई कैसे पहुंचे?
यह मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले के बिसोई गांव में स्थित है। जो उत्तराखंड राज्य मार्गो द्वारा अच्छे से जुड़ा हुआ है और सड़क मार्ग द्वारा आप यहाँ तक आसानी से पहुंच जायेंगे। नीचे हम बिसोई स्थित महासू देवता मंदिर तक आप कैसे पहुंच सकते हैं उसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं…
सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
बिसोई तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका है की आप सड़कमार्ग द्वारा इस सफर को तय करें। यह मंदिर देहरादून जिले में पड़ता है तो आपको सबसे पहले देहरादून आना होगा उसके बाद देहरादून से बिसोई के लिए दो रास्ते गए हैं जिसमे एक मसूरी होते हुए और दूसरा विकासनगर के मार्ग होते हुए। इन दोनों रास्तो में से सबसे अच्छा रास्ता मसूरी वाला है जिससे मंदिर पास भी पड़ता है और रास्ता भी अच्छा है।
देहरादून से मसूरी की दूरी 34 किलोमीटर है और वहां से मंदिर मात्र 50 किलोमीटर रह जाता है। इसके अलावा एक रास्ता देहरादून से कालसी होते हुए जाता है जो लगभग 90 किलोमीटर के आस-पास पड़ता है। यदि आप चकराता हिल स्टेशन में हैं तो वहां से यह मंदिर मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर है। देहरादून, मसूरी और चकराता तीनो जगहों से ही आप प्राइवेट गाड़ी या फिर टुकड़ो में शेयरिंग गाड़ी द्वारा बिसोई मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
यदि आप अपनी गाड़ी द्वारा देहरादून के रास्ते से आते हैं तो नीचे दिए गए रूट को फॉलो कर सकते हैं…
- देहरादून – मसूरी – केम्पटी फॉल – यमुना ब्रिज – नागथात – बिसोई गांव – महासू देवता मंदिर
- देहरादून – छरबा – डाकपत्थर – कलसी – बैठा – मुंधनं – नागथात – बिसोई गांव – महासू देवता मंदिर
- चकराता – कलिआना – बिरमऊ – छतु – भोडा – मुंधनं – नागथात – बिसोई गांव – महासू देवता मंदिर
रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
बिसोई गांव एक पहाड़ी इलाका है और यहाँ पर किसी भी तरह की कोई भी रेल कनेक्टिविटी नहीं है। बिसोई गांव के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है, जो बिसोई गांव से 91 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देहरादून से बिसोई गांव तक की दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा पूरी करनी होगी, जो आप प्राइवेट टैक्सी या बसों द्वारा पूरा कर सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
रेलवे स्टेशन की तरह ही यहाँ पर कोई एयरपोर्ट भी मौजूद नहीं है, बिसोई के सबसे नजदीक एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जो देहरादून में स्थित है। एयरपोर्ट से बिसोई गांव तक की दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा पूरी करनी होगी। जिसे आप प्राइवेट गाड़ियों द्वारा आसानी से पूरा कर सकते हैं।
बिसोई महासू देवता मंदिर की टाइमिंग
इस मंदिर में जाने से पहले आपको मंदिर की टाइमिंग के बारे में जरूर पता होना चाहिए। यह मंदिर 24 घंटे खुला रहता है और आप किसी भी समय यहाँ आ सकते हैं। यदि साल की बात करें तो यह पूरी साल खुला रहता है और किसी भी सीजन में आप इस मंदिर में विजिट कर सकते हैं।
बिसोई महासू देवता मंदिर आने का सबसे अच्छा समय
यह मंदिर साल में हर समय खुला रहता है लेकिन यदि यहाँ आने के सबसे अच्छे समय की बात करें तो वो मार्च से जून के बीच का है। इस समय में यदि आप चकराता या मसूरी घूमने आ रहे हैं तो आप इस ऑफ बीट डेस्टिनेशन प्लेस पर जा सकते हैं। यदि आपको ठंडो का मौसम पसंद है तो आप नवंबर से फरवरी के बीच भी इस मंदिर में विजिट कर सकते हैं और इस समय आप यहाँ पर बर्फवारी का आनंद ले सकते हैं।
यदि आप दिसंबर में चकराता या मसूरी घूमने आएं हैं तो आप 15 दिसंबर को इस मंदिर में जरूर विजिट करें क्योंकि इस दिन मंदिर का 2023 में उद्घाटन हुआ था इसलिए अब हर साल इस दिन बिसोई और उसके आस पास के 15 गांव के लोग मंदिर में दिवाली जैसा आयोजन करते हैं और अलग-अलग रीती रिवाजो द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।
- बेस्ट टाइम:- मार्च से जून और नवंबर से फरवरी (15 दिसंबर को मंदिर में मनाई जाने वाली दिवाली पर)
गेस्ट हाउस और खाना
यदि आप यहाँ पर आते हैं और एक रात रुकना चाहते हैं तो आपको मंदिर के बाहर परिसर में बनी धर्मशाला में रुकने की सुविधा मिल जाएगी। यदि तीर्थयात्री ज्यादा हैं और धर्मशाला में रूम न मिले तो आप बिसोई गांव के लोगो के घरों में भी रुक सकते हैं। मंदिर के बाहर एक छोटी सी दूकान है जहाँ आप खाना खा सकते हैं और नास्ता कर सकते हैं। बाकि बिसोई गांव के अंदर भी कुछ छोटी-छोटी दुकाने हैं जहाँ से आप कुछ स्नैक्स और नास्ता ले सकते हैं।
महत्वपूर्ण बाते
- आप जब भी देहरादून या चकराता से इस मंदिर की यात्रा शुरू करें तो पहले ही लोगो से इस मंदिर का रास्ता पूछ लें और एक छोटा सा रूट मैप बना लें।
- मंदिर में बनी धर्मशाला में आप रुक सकते हैं लेकिन यदि आप कैंपिंग करना चाहते हैं तो बिसोई गांव में कुछ जगहों पर कैंपिंग कर सकते हैं।
- यदि आप एक दिन में इस यात्रा को पूरा करना चाहते हैं तो आप जल्दी इस यात्रा को शुरू करें और रात होने से पहले ही अपने रूम तक वापस आ जाएँ।